Life for the Soldier at Siachen

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ज़मीन ऐसी बंजर और दर्रे इतने ऊँचे कि सिर्फ़ पक्के दोस्त और कट्टर दुश्मन ही वहाँ तक पहुँच सकते हैं. ये है सियाचिन, दुनिया का सबसे ऊँचा रणक्षेत्र…

सियाचिन समंदर तल से 21,600 फ़ीट ऊपर है ठंड में तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस तक नीचे पहुँच जाता है बेस कैंप से भारत की जो चौकी सबसे दूर है उसका नाम इंद्रा कॉल है और सैनिकों को वहाँ तक पैदल जाने में लगभग 20 से 22 दिन का समय लग जाता है…

चौकियों पर जाने वाले सैनिक एक के पीछे एक लाइन में चलते हैं और एक रस्सी सबकी क़मर में बँधी होती है क़मर में रस्सी इसलिए बाँधी जाती है क्योंकि बर्फ़ कहाँ धँस जाए इसका पता नहीं रहता और अगर कोई एक व्यक्ति खाई में गिरने लगे तो बाकी लोग उसे बचा सकें…

ऑक्सीजन की क़मी होने की वजह से उन्हें धीमे-धीमे चलना पड़ता है और रास्ता कई हिस्सों में बँटा होता है. साथ ही ये भी तय होता है कि एक निश्चित स्थान पर उन्हें किस समय तक पहुँच जाना है और फिर वहाँ कुछ समय रुककर आगे बढ़ जाना है…

सैनिक लकड़ी की चौकियों पर स्लीपिंग बैग में सोते हैं, मगर ख़तरा सोते समय भी मँडराता रहता है क्योंकि ऑक्सीजन की कमी की वजह से कभी-कभी सैनिकों की सोते समय ही जान चली जाती है इस स्थिति से बचाने के लिए वहाँ खड़ा संतरी उन लोगों को बीच-बीच में उठाता रहता है और वे सभी सुबह छह बजे उठ जाते हैं. वैसे उस ऊँचाई पर ठीक से नींद भी नहीं आती…

वहाँ नहाने के बारे में सोचा नहीं जा सकता और सैनिकों को दाढ़ी बनाने के लिए भी मना किया जाता है क्योंकि वहाँ त्वचा इतनी नाज़ुक़ हो जाती है कि उसके कटने का ख़तरा काफी बढ़ जाता है और अगर एक बार त्वचा कट जाए तो वो घाव भरने में काफ़ी समय लगता है…